- उधोगों का विकास एवं उपयोग स्वावलंबी लोक सेवियों का तंत्र विकसित कराने के लिए करना.
- जनमानस को श्रम करने में संकोच तथा नौकरी की मानसिकता से उबरना.
- उद्यमी प्रवृत्ति एवं कौशल का विकास करना.
- उद्यमी लोगों को कुटीर उधोगों - ग्रामोद्योग की ओर उन्मुख किया जाया क्योकि भारत जैसे देश में आम आदमी के अभाव मुक्ति को लिए जरुरी है.
- स्वावलंबी उधोगों के तंत्र का विकास " सर्वे भवन्तु सुखीन:" की यज्ञीय मानसिकता के साथ करना .
" कुटीर उधोग को हर घर में स्थान मिले , हर खाली हाथ को काम मिले " युग ऋषि पं श्री राम शर्मा आचार्य
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